विश्वनाथप्रसाद मिश्र वाक्य
उच्चारण: [ vishevnaathepresaad misher ]
उदाहरण वाक्य
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- रामचरितमानस / प्रणेता, तुलसीदास ; संपादक, विश्वनाथप्रसाद मिश्र /
- पं॰ विश्वनाथप्रसाद मिश्र का मत है कि पिहानी पठानों की बस्ती है।
- आचार्य विश्वनाथप्रसाद मिश्र ने ' घनानन्द ग्रंथावली' के अंतर्गत इनकी निम्नलिखित रचनाओं को स्थान दिया है:
- इस संबंध में पं. विश्वनाथप्रसाद मिश्र के शोधपूर्ण तर्क एवं प्रमाणपूर्ण निष्कर्ष मान्य हैं ।
- ओज गुण के उदाहरण के लिए आचार्य विश्वनाथप्रसाद मिश्र जी ने निम्नलिखित कविता उद्धृत की है-
- विश्वनाथप्रसाद मिश्र के मतानुसार उनकी मृत्यु अहमदशाह अब्दाली के मथुरा पर किए गए द्वितीय आक्रमण में हुई थी।
- विश्वनाथप्रसाद मिश्र के मतानुसार उनकी मृत्यु अहमदशाह अब्दाली के मथुरा पर किए गए द्वितीय आक्रमण में हुई थी।
- विश्वनाथप्रसाद मिश्र के मतानुसार उनकी मृत्यु अहमदशाह अब्दाली के मथुरा पर किए गए द्वितीय आक्रमण में हुई थी।
- अध्यक्ष थे-आचार्य विश्वनाथप्रसाद मिश्र ; जो ‘ हिन्दी अध्ययन शाला ', विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में हिन्दी-विभागाध्यक्ष भी थे।
- इसी प्रकार आचार्य विश्वनाथप्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक काव्यांग-कौमुदी में माधुर्य गुण के लिए कवि देव की निम्नलिखित कवित्त को उद्धृत किया है-
- आचार्य विश्वनाथप्रसाद मिश्र के मत में भी ग्रियर्सन वाले ‘ आनन्द ' घनानन्द नहीं हैं, क्योंकि दोनों के रचना-काल में लगभग चालीस वर्षों का अंतर है।
- अन्य आलोचकों ने माना है कि घनानन्द के समय हुई थी, परंतु विश्वनाथप्रसाद मिश्र के मतानुसार उनकी मृत्यु नादिरशाह के आक्रमण में न होकर अहमदशाह अब्दाली के मथुरा पर किए गए द्वितीय आक्रमण में सं.
- मूल के मुद्रित संस्करणों का उल्लेख उनके स्वतंत्र विवरण के साथ यथास्थान है तथा केशव ग्रन्थावली के रूप में केशव के सभी प्रमाणिक ग्रन्थ विश्वनाथप्रसाद मिश्र के द्वारा सम्पादित होकर हिन्दुस्तानी अकादमी, प्रयाग से सन् 1959 में प्रकाशित कर दिये गये हैं।
- मूल के मुद्रित संस्करणों का उल्लेख उनके स्वतंत्र विवरण के साथ यथास्थान है तथा केशव ग्रन्थावली के रूप में केशव के सभी प्रमाणिक ग्रन्थ विश्वनाथप्रसाद मिश्र के द्वारा सम्पादित होकर हिन्दुस्तानी अकादमी, प्रयाग से सन् 1959 में प्रकाशित कर दिये गये हैं।
- शुक्ल जी के `हदीस ' केविषय में विश्वनाथप्रसाद मिश्र शुक्ल जीके भातुस्पुत्रश्री चंद्रशेखर जीको प्रमाण मानते है और उस चंद्रशेखर शुक्ल का कहनाहै-"मनुष्य को ह्रदय, बुद्धि और शरीर की त्रिमूर्ति मनते है और कहतेथे कि तीनो कीसमस्त शक्तियोके सामंजस्य का उत्कर्ष ही मनुष्य की पूर्णता है.
- पं विश्वनाथप्रसाद मिश्र ने इसे ' शृंगारकाल ' नाम दिया।उनका मत है कि हिंदी-साहित्य का काल विभाजन करते हुए इतिहासकारों ने रीतिकाल के भीतर कुछ ऐसे कवियों को फुटकल खाते में डाल दिया है जो रीतिकाल की अधिक व्यापक प्रवृत्ति या शृंगार या प्रेम के उन्मुक्त गायक थे।
- श्री विश्वनाथप्रसाद मिश्र ने जो सौ वर्ष का अंतर माना है, वह संभवतः इसी कारण है कि वृंदावनवासी ‘ आनन्दघन ' का समय विक्रम की 18 वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध जनधर्मी ‘ घन आनन्द ' और वृंदावन के ‘ आनन्दघन ' के पश्चात तीसरा नाम शेष रहता है और वह है-नंदगाँव के आनन्दघन।
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